गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:,  गुरू साक्षात परम ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम:

आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का पर्व गुरु मनाया जाता है | इस दिन महर्षि  कृष्ण द्वेपायन व्यास जी का जन्म हुआ था, अत: उनको श्रद्धा स्वरूप याद करने हेतु इस पर्व को मनाया जाने लगा | कालांतर में इस पर्व को गुरु को श्रद्धा अर्पण करने के पर्व के रूप में मनाया जाने लगा और यह परंपरा आज भी जारी है | यहाँ पर यह स्पष्ट करना आवश्यक होगा कि महर्षि व्यास जी ने ही महाभारत और पुराणों की रचना के साथ-साथ ब्रह्म सूत्र की रचना भी की थी, जिसका भाष्य १२०० वर्ष पूर्व आदि शंकराचार्य जी ने लिखा था | महर्षि व्यास जी ने ही वेदों को चार भागों में विभक्त किया था जिसे हम आज ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद के नाम से जानते हैं |

प्राचीन भारत यानि आर्यावर्त के समय से आज के भारत तक, ज्ञान का मुख्य स्त्रोत गुरु को ही माना गया है, लेकिन जब बात आध्यात्मिक ज्ञान या सर्व विद्याओं की आती है तो आध्यात्मिक गुरुओं में सर्वोच्च स्थान आदि गुरु श्री दक्षिणामूर्ति का ही आता है, जो की भगवान शिव का ही एक रूप हैं | श्री दक्षिणामूर्ति ही समस्त विद्याओं के आदि गुरु माने गए हैं | सृष्टि के आरम्भ में वेद विद्या का ज्ञान सर्वप्रथम ब्रह्माजी के तीन मानस पुत्रों सनक, सनंदन, सनातन और भगवान शिव के पुत्र श्री कार्तिकेय जिन्हें सनत कुमार भी कहते हैं, को दिया गया था | तब से ही वेदों का मौखिक ज्ञान देने की परम्परा शुरू हुई | इसे ही गुरु शिष्य परम्परा के नाम से जाना जाता है | भारत एक अत्यंत ही प्राचीन देश है और हजारों ऋषि मुनियों के माध्यम से यह दिव्य ज्ञान दिया जाता रहा है | आज गुरु पूर्णिमा के अवसर पर भारत के प्राचीन और वर्तमान सभी गुरुओं को श्रद्धार्पण करते हुए “मार्ग फॉर पीस” कार्यक्रम की  हम शुरुआत कर रहे हैं | हम आशा करते हैं कि हमारे सभी जानकार पाठक इस पहल का ना केवल स्वागत करेंगे बल्कि इस ब्लॉग को साझा (शेयर) करके और हमारे शांति स्थापना के कार्यक्रम मार्ग फॉर पीस का अभिन्न अंग बन कर प्रकाश की गति से सम्पूर्ण  मानव जाति के कल्याण के लिए वैदिक चेतना की लहर को फैलायेंगे |


मार्ग फॉर पीस: भूमिका

आधुनिक काल खंड में हम अपनी समृद्ध ज्ञान की वैदिक परम्परा को भूल चुके हैं और समर्थ एवं सशक्त अध्यात्मिक नेतृत्व के अभाव में पश्चिम ज्ञान की परंपरा,उनकी शासन व्यवस्था, उनके देह आधारित असीमित भोग की परंपरा (जिसे अंध उपभोक्तावाद के नाम से जाना जाता है), एकल व्यक्ति आधारित पारिवारिक और सामाजिक व्यवस्था का अन्धानुकरण कर रहे हैं |

आज से लगभग १२०० वर्ष पहले शिव अवतार आदि शंकराचार्य ने वैदिक धर्म को सर्वोच्च स्थान पर प्रतिष्ठित किया था और सम्पूर्ण भारत में अद्वैत मत की स्थापना करते हुए चार शंकराचार्य पीठों का निर्माण किया था | प्रत्येक पीठ पर वैदिक धर्म के मर्मज्ञ और वेद विद्या में पारंगत एक-एक आचार्य की नियुक्ति की थी और उन्हें एक छत्र व धर्म ध्वजा प्रदान किया था, जिसका सांकेतिक अर्थ ये था कि शंकराचार्य का पद शासन व्यवस्था और शासक से भी उच्च है और राजा अथवा शासन व्यवस्था को अपनी रीति नीति का निर्माण वैदिक धर्म की अनुपालना करते हुए ही करना होगा और किसी विवाद की स्थिति में शंकराचार्य का मत ही सर्वोच्च होगा | कालांतर में विदेशी आक्रमणकारियों के दुष्प्रभाव में ये व्यवस्था क्षीण हो गयी और जिन शंकराचार्यों पर अद्वैत मत की रक्षा करते हुए शासन व्यवस्था को नियंत्रण में रखने का दायित्व था, वे खुद भौतिकता के मायाजाल में फंस कर अपना दायित्व भूल बैठे | ये ही कारण है कि अंग्रेजी राज में हम ना तो अपनी शिक्षा पद्धति बचा पाए ना शासन व्यवस्था और ना ही हम अपनी अर्थव्यवस्था की रक्षा कर पाये |

आज के क्या हालत है इसके विस्तार में जाने की कोई आवश्यकता नहीं है | हमारा जीवन चंद रुपयों का गुलाम बन कर रह गया है | गिरते सामाजिक और पारिवारिक मूल्य, कहीं  दो जून की रोटी कमाने की मशक्कत तो कहीं जीवन की न्यूनतम आवश्यकता पूरी करने की आपधापी, तो कहीं बीमारियों से जूझते व्यक्ति और परिवार अर्थात हर तरफ दुःख ही दुःख, मन में अशांति और इन सबके बीच देश की शासन व्यवस्था के कर्णधारों का अनैतिक और आपराधिक आचरण, सरकारी धन य जनता के धन के दुरुपयोग करते हुए निजी हित साधते हुए भोगविलास का जीवन व्यतीत करना, धर्माचार्यों का धर्म के विपरीत आचरण, पंचतारा संस्कृति का अनुसरण तथा राजनैतिक दलों, राजनेताओं और शीर्ष सत्ताधारियों से उनकी अत्यंत निकटता और चुनावों के वक्त उनका अपने अनुयायिओं से इन सत्ताधारियों के समर्थन का आव्हान और नतीजे में ऐसे ही आसुरी वृत्तियों वाले राजनेताओं की पुनः सत्ता में वापसी |  इन सब कारणों के चलते आज के समय में हम अशांत हैं, हर समय किसी अज्ञात डर या अनहोनी की आशंका से आशंकित असुरक्षित हैं और जीवन दिनों दिन दूभर और दुरह होता जा रहा है |

ऐसे में क्या उपाय हो? क्या रास्ता हो? किस पथ अथवा मार्ग पर हम अग्रसर हों  जिससे हमारा जीवन सुखी, समृद्ध,  वैभवशाली तथा संपन्न हों और शांति के साथ अपना व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामजिक जीवन व्यतीत कर सकें ?

जैसा कि पूर्व में ही बताया जा चुका है कि वैदिक पथ का अनुसरण करके ही हम सर्वांगीण उन्नति को प्राप्त हो सकते हैं | वैदिक पथ या वैदिक मार्ग ही स्थायी शांति, सुख और समृद्धि के द्वार खोल सकता है | वेदों में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष यह चार पुरुषार्थ बताये गए हैं वेदाधारित यह चार पुरुषार्थ का मनुष्य जीवन में अनुपालन करके निज और सामजिक हर स्तर पर जीवन को सुखमय, शांत और समृद्ध बनाया जा सकता है |


मार्ग फॉर पीस :  एक परिचय

आज के समय में जब वैदिक ज्ञान विलुप्ती के कगार पर है तब वैदिक मार्ग का मार्गदर्शन या पथप्रदर्शन कौन कर सकता है, जाहिर सी बात है ऐसे आध्यात्मिक गुरु ही समस्त मानव जाति का मार्गदर्शन कर सकते हैं जो सांसारिक मोहमाया के जाल से परे हों, जिन्हें राग द्वेष नहीं व्यापता हो, जो त्याग, तपस्या, सेवा और  बलिदान की साक्षात् प्रतिमा हों, जो ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग के शिखर पुरूष हों, जो वेद ज्ञान को  प्रत्यक्ष कर चुके हों ,जो ब्रह्म ज्ञान से युक्त हों ऐसे अध्यात्मिक गुरु ही सम्पूर्ण विश्व को वैदिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे सकते हैं |

ऐसे  ही ज्ञान मूर्ति, धर्म मूर्ति आध्यात्मिक गुरु और प्राचीन वैदिक विद्या के विशेषज्ञ, श्री मणि स्वामी जी, जोकि गुरूजी के नाम से विख्यात हैं और स्कंदाश्रम (भिलाई) के संस्थापक हैं,  के मार्गदर्शन में मार्ग फॉर पीस का संचालन किया जा रहा है |

वेद मंत्र वास्तव प्रार्थना रूप में ऐसी दिव्य ध्वनियों का में संकलन होते है जिनके सही और नियमित उच्चारण द्वारा हम रोग शोक से मुक्त हो सकते हैं और हमारी समस्त वांछित मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं | आने वाले समय में गुरु जी के अध्यात्मिक दिशा निर्देशन में मार्ग फॉर पीस के माध्यम से वेद मंत्र आधारित पूर्णतया नि:शुल्क प्रार्थना सभाओं का आयोजन करेंगे जिनके माध्यम से भाग लेने वाले सभी श्रद्धालु गण लाभ उठा सकेंगे |

गुरूजी श्री मणि स्वामी जी (संस्थापक स्कन्दाश्रम भिलाई)
http://skandashram.com/

भारत में अंग्रेजी राज के आगमन के साथ ही वैदिक गुरुकुल आधारित प्राचीन वैदिक शिक्षा पद्धति और इससे निसृत दिव्य ज्ञान की अमूल्य परंपरा विनष्ट हो गयी | दरअसल शिक्षा का जो स्वरूप और उसका जो अर्थ जनमानस में प्रतिष्ठित हो चुका है, वह मात्र डिग्री हासिल करने और उसके बाद पेट भरने की जद्दोजहद तक ही सीमित रह गया है | यदि व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकताएं पूर्ण भी हो जायें तो भी वैश्विक पूँजीवाद की संतान उपभोक्तावाद के बढ़ते प्रभाव के कारण असीमित भोग की सामग्री जुटाने में ही व्यक्ति का जीवन ख़त्म हो जाता है | शिक्षा का मूल उद्देश्य होता है विद्यार्थी की चेतना को जागृत करना, उसके भीतर छुपी प्रतिभा को इस तरह विकसित करना की वह अपना जीवन यापन सुख और चैन के साथ कर सके, उसे इस लायक बनाना की वह सही और गलत की पहचान कर सके | बड़े होकर विद्यार्थी एक बेहतरीन नागरिक बने और समाज के विकास में अपना योगदान दे सके |

सवाल यह है क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था इन उद्देश्यों की पूर्ति कर पा रही है ? हमारी वर्तमान और आने वाली पीढ़ियां कब तक इस नाकाम शिक्षा व्यवस्था से उपजे दंश को भोगती रहेगी ? किसी भी राष्ट्र का मूलाधार वहां की शिक्षा व्यवस्था होता है | जिस तरह परिवार में मां यदि समझदार और संस्कार वान हो तो पूरा परिवार संस्कारी बनता है उसी तरह यदि देश में उचित शिक्षा की व्यवस्था हो तो वह देश तरक्की के शिखर पर होता है | हम बहुधा यह कहते हुए पाये जाते हैं कि अतीत में हमारा देश सोने की चिड़िया था, भारत पूरी दुनिया में समृद्धि, वैभव के साथ-साथ ज्ञान के शिखर पर था | हम लोग यह भी अच्छी तरह से जानते हैं की इसके मूल में हमारी गुरुकुल आधारित वैदिक गुरुकुल पद्धति थी | हम में से बहुत से लोग ये अफ़सोस भी प्रगट करते हैं कि हमारे ज्ञान केन्द्रों को मुग़ल आक्रान्ताओं ने और अंग्रेजों ने ख़त्म कर दिया | लेकिन यहाँ पर सवाल उठता है कि क्या इस प्रकार की बातें करके हमारे कर्तव्य की इतिश्री हो जाती है ?  हम कब हमारी मूल वैदिक गुरुकुल आधारित शिक्षा प्रणाली की और उन्मुख होंगे ? हम कब यह समझेंगे कि अंग्रेजों द्वारा स्थापित शिक्षा प्रणाली के स्थान पर वैदिक गुरुकुल आधारित शिक्षा प्रणाली की स्थापना से ही भारत एक फिर पूरी दुनिया का सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न शिखर राष्ट्र बन सकेगा |

ऐसे ही ज्वलंत प्रश्नों का उत्तर है मार्ग फॉर पीस | मार्ग फॉर पीस का मुख्य उद्देश्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष आधारित वैदिक शिक्षा प्रणाली की आज के ज्ञान, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ तालमेल बैठते हुए  पुनर्प्रतिष्ठा करते हुए शांति कि स्थापना करना है | चूँकि हमारी प्राचीन गुरुकुल व्यवस्था नष्ट हो चुकी है और आज जितने भी वैदिक गुरुकुल चल रहे हैं वहां की शिक्षा-दीक्षा यज्ञ और पूजा संपन्न करने वाले वेदाचार्यों को तैयार करने तक ही सीमित है | हाँलाकि वेदाचार्यों की भी समाज में अत्यंत आवश्यकता है अतः इन वैदिक गुरुकुलों का भी अत्यंत महत्व है लेकिन मार्ग फॉर पीस का उद्देश्य है कि हम ऐसे वैदिक ज्ञान के केंद्र की स्थापना करें जहाँ हमारे वेदों और वेदांत के अत्यंत गूढ़ ज्ञान, विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर अनुसन्धान और विकास का कार्य हो सके | इसके अतिरिक्त वैदिक ज्ञान केंद्र के माध्यम से हम आगे चल कर भविष्य ऐसी शिक्षा प्रणाली भी विकसित कर सकें जिस पर आधारित विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय, आज के समय के दुनिया में सर्वाधिक प्रतिष्ठित शिक्षा केन्द्रों को पछाड़ कर, दुनिया के सर्वाधिक प्रतिष्ठित शिक्षा केन्द्रों के रूप में जाने जा सकें |

हम सभी जानते हैं कि विद्यार्थी ही देश का भविष्य होते हैं, वैदिक ज्ञान और शिक्षा के केन्द्रों से निकले विद्यार्थी ही समाज में शांति की स्थापना कर सकते हैं और यही मार्ग फॉर पीस का मुख्य उद्देश्य भी है |

आज गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर क्यों ना हम ऐसे वैदिक गुरूकुलम की स्थापना का संकल्प लें जहाँ वैदिक ज्ञान विज्ञान और प्रौद्योगिकी का अनुसन्धान और विकास हो सके बल्कि एक नयी वैदिक शिक्षा प्रणाली का विकास भी हो जो आज के समय की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति करती हो और उस प्रणाली से निकले विद्यार्थी राष्ट्र और समाज का नेतृत्व करते हुए भारत को पुनः शिखर राष्ट्र का दर्जा दिला सकें | देवीय संयोग से हमारा मार्गदर्शन करने के लिए वेद विद्या के गुरु भी मौजूद हैं तो क्यों ना हम आगे बढ़ें और राष्ट्र की तरक्की, उसके स्वर्णिम भविष्य की नींव रखने के लिए मजबूत क़दम उठायें | यदि आप आलेख में लिखी गयी बातों से सहमत है तो मार्ग फॉर पीस से जुड़कर अपना अमूल्य योगदान दें |

आप हमारे टेलीग्राम चैनल  https://t.me./marg_for_peace  के माध्यम से हम से जुड़ सकते हैं, अधिक जानकारी  के लिए हमें मेल कर सकते हैं margforpeace@gmail.com

अंत में, आप सभी जागरूक पाठकों को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं | परमात्मा आप सबका कल्याण करें |

                

जय जय कार्तिकेय

                                                                

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