मनुष्य जीवन में धर्म, योग, वेद, वेदांत, तंत्र, मंत्र ,अध्यात्म का
महत्व और आधुनिक जीवन शैली
मार्ग फॉर पीस वैश्विक शांति की स्थापना के लिए महान आध्यात्मिक गुरु और वेद विद्या के सिद्ध विशेषज्ञ जो की गुरूजी के नाम से विख्यात है, के मार्ग दर्शन में शुरू की गई एक पहल है | इस ब्लॉग की शुरुआत मार्ग फॉर पीस को जन जन तक पहुँचाने के लिए की गई है | आज भारत की सुषुप्त चेतना को जागृत करने की आवश्यकता है क्योंकि जैसे जैसे मशीनों का विकास हुआ, सूचना तकनीक का प्रचार और प्रसार हुआ वैसे वैसे ही चेतना में गिरावट हुई है | इससे धर्म की बहुत ज्यादा हानि हुई है और अधर्म का विस्तार व्यापक हुआ है |
भारत
ऋषियों और मुनियों की भूमि रहा है | भारतीय मनीषा अर्थात मनुष्य की सोचने विचारने
की शक्ति ने मनुष्य जीवन में धर्म,
अध्यात्म, वेद, वेदांत, मंत्र और तंत्र पर गहन चिंतन और मनन किया है |
जीवन क्या है ? हम कौन हैं ? हम संसार में क्यों आये हैं ? हमारे जीवन में या संसार में इतना दुःख क्यों है ? सुख क्या है ? इस अशांति की वजह क्या है ? हमारी समस्याओं का मूल कारण क्या है ? और हम किस प्रकार से इनसे छुटकारा पा कर सुख और शांति पूर्वक अपना जीवन जी सकते हैं ? आदि आदि | यह सवाल हमारे मन में उठने चाहियें | इन सारे प्रश्नों को हम इस सूत्र से समझ सकते हैं
सुखस्य मूलं धर्म , धर्मस्य मूलं अर्थ: , अर्थस्य मूलं राज्य, राजस्य मूलं इन्द्रिय जय;
इस सूत्र को यदि डिकोड करें तो सूत्र कह रहा है सुख का मूल धर्म है , धर्म का मूल अर्थ यानी रूपये, पैसे का मूल अर्थव्यवस्था या इकोनोमी है, अर्थ का मूल राज्य है | किसी भी देश का शासक ही यह तय करता है कि वो पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को अपनाता है या समाजवादी अर्थव्यवस्था को या लोक कल्याणकारी अर्थव्यवस्था को | इस सूत्र का अंतिम पद कहता है राजस्य मूलं इन्द्रिय जय: | यही पद सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि राज्य का मूल होता है वहां का शासक और सूत्र का अंतिम पद कहता है राजा को इन्द्रिय जय होना चाहिये | यानि ऐसा शासक जिसने अपनी इन्द्रियों पे विजय प्राप्त कर ली हो उस राज्य की अर्थव्यवस्था निश्चित रूप से जनता के पूर्ण कल्याण के लिए समर्पित होगी और ऐसे राज्य में धर्म का परचम लहराएगा और जब धर्म की पालना होगी तो प्रजा सुखी होगी | लेकिन आज क्या हो रहा है धर्म शब्द के अर्थ को ही संकीर्ण कर पूजा पाठ की पद्धतियों से जोड़ दिया गया है | स्वायम्भू या छद्म विद्वान धर्म का ज्ञान बाँट रहे हैं और ज्यादातर जगह तो धर्म के नाम पर ही सारे दंगे फसाद हो रहे हैं | तो कुछ नास्तिक किस्म के लोग धर्म को अफीम ही बता रहे हैं , वहीँ जगह जगह धर्म की दुकानें खुल गयी हैं |
आजकल धर्म, अध्यात्म, वेद, वेदांत, मंत्र और तंत्र
पर बहुत ज्यादा असमंजस या मानसिक विभ्रम की स्थिति बनी हुई है और इन विषयों पर समाज में गलत, या आधी अधूरी
जानकारियां ज्यादा फैली हुई हैं | आखिरकार
इस स्थिति का कारण क्या है ? इसका मुख्य
कारण है, वास्तविक ज्ञान
का अभाव होना | कलिकाल में
भौतिकतावाद के बढ़ते प्रभाव के कारण धर्मगुरुओं का अपने मार्ग से पतित होना और हमारी शिक्षा पद्धति में इन विषयों का कोई
स्थान न होना | स्कूल का हिंदी अर्थ विद्यालय होता है, विद्यालय का संधि
विच्छेद करें तो विद्या + आलय , आलय मतलब घर यानि विद्या का घर | स्कूलों में जो पढ़ाई होती हैं
वो न तो बच्चे को किसी रोजगार के लायक बना पाती है, ना धर्म आदि का ज्ञान
दे पाती है । तो फिर समाज में धर्म जो कि
जीवन का आधार है के विषय में भ्रांतियां होनी स्वाभाविक ही हैं और यही हमारी
समस्त समस्याओं का मूल कारण है |
आज ऐसी
शिक्षा पद्धति का सर्वथा अभाव है जो
मनुष्य को रोजगार के लायक बनाने के साथ मनुष्य की चेतना को क्रमोन्नत कर सके |
ऐसे समय
और हालातों में मार्ग फॉर पीस ने विश्व शांति का बीड़ा उठाया है |
मार्ग
फॉर पीस के तहत हम ना सिर्फ धर्म, योग, वेद, वेदांत, अध्यात्म आदि विषयों पर
सार्थक ऐसी चर्चा करेंगे जिसका लाभ हम हमारे व्यस्त जीवन के बावजूद उठा सकें बल्कि
समाज को नयी दिशा देने के लिए आध्यत्मिक नेतृत्व विकसित करने की दिशा में आगे
बढ़ेंगे |
हमारा मानना है कि हमें मिल जुल कर सामजिक चेतना को जगाने का प्रयास करना होगा | इसके लिए पहले हमें खुद की चेतना को जागृत करना होगा ।
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